स्वद्रव्य
From जैनकोष
मो.पा./मू./१८ दुट्ठट्ठकम्मरहियं अणोवमं णाणविग्गहंणिच्चं। सुद्धं जिणेहिं कहियं अप्पाणं हवइ सद्दव्वं।१८। = दुष्ट कर्मों से रहित हैं, तथा अनुपम ज्ञान ही है शरीर जिसके ऐसी अविनाशी, विकार रहित केवलज्ञानमयी आत्मा जिन भगवान् ने कही है सो स्वद्रव्य है।