हरिवर्मा
From जैनकोष
अंगदेश के चम्पापुर नगर का राजा था। दीक्षा धारणकर ११ अंगों का अध्ययन किया। दर्शनविशुद्धि आदि भावनाओं का चिन्तवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। अन्त में समाधि मरणकर प्राणत स्वर्ग में इन्द्र हुआ। (म.पु./६७/२-१५) यह मुनिसुव्रत नाथ भगवान का पूर्व का दूसरा भव है।-देखें - मुनिसुव्रत।