कालानुयोग - योग मार्गणा
From जैनकोष
4. योग मार्गणा—
संकेत—1 समय सम्बन्धी प्ररूपणा के 11 भंगों का विस्तार पहले सारणी सम्बन्धी नियमों में दिया गया है। वहा̐ से देख लें।–देखें काल - 5
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
||||
नं.1 |
नं. 2 |
नं. 1 |
नं.3 |
||||||||||
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सू. |
सू. |
|
|
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
|
|||||||||||||
पा̐चों मनोयोगी |
... |
|
16-17 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
97-98 |
1 समय |
योग परिवर्तनकर मरण व व्याघात |
अन्तर्मुहूर्त |
योग परिवर्तन |
पा̐चों वचनयोगी |
... |
|
16-17 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
97-98 |
1 समय |
योग परिवर्तनकर मरण व व्याघात |
अन्तर्मुहूर्त |
योग परिवर्तन |
काय योगी सा0 |
... |
|
16-17 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
100-101 |
अन्तर्मु0 |
इससे कम काल परिभ्रमण का अभाव |
आ.असं.पु.परिवर्तन |
एकेन्द्रियों मे परिभ्रमण |
औदारिक.. |
... |
|
16-17 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
103-104 |
1 समय |
योग परिवर्तन कर मरण या व्याघात |
22000 वर्ष |
पृथिवी कायिकों में परिभ्रमण |
औदारिक मिश्र |
... |
|
16-17 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
106-107 |
1 समय |
दण्ड कपाट समुद्घात में |
अन्तर्मुहूर्त |
पूर्व भवों में इतना ही उत्कृष्ट है अधिक नहीं |
वैक्रियक |
... |
|
16-17 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
106-107 |
1 समय |
योग प्राप्तकर मृत्यु या व्याघात |
अन्तर्मुहूर्त |
पूर्व भवों में इतना ही उत्कृष्ट है अधिक नहीं |
वैक्रियक मिश्र |
... |
|
15-20 |
अन्तर्मु. |
2 विग्रह सहित देवों में उत्पत्ति का प्रवाह क्रम |
पल्य/असं |
2 विग्रहसहित देवों में उत्पत्ति का प्रवाह क्रम |
|
109-110 |
अन्तर्मु0 |
मिश्र योग में मरण नहीं |
अन्तर्मुहूर्त |
इससे अधिक काल अवस्थाव का अभाव |
आहारक |
... |
|
21-23 |
1 समय |
एक जीववत् |
अन्तर्मु0 |
एक जीववत् |
|
106-107 |
1 समय |
योग प्राप्तकर दूसरे समय शरीर प्रवेश |
अन्तर्मुहूर्त |
अधिक से अधिक इतने काल पश्चात् शरीर प्रवेश |
आहारक मिश्र |
... |
|
24-26 |
अन्तर्मु0 |
एक जीववत् |
अन्तर्मु0 |
एक जीववत् |
|
109-110 |
अन्तर्मु0 |
|
अन्तर्मुहूर्त |
|
कार्माण |
... |
|
16-17 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
112-113 |
1 समय |
1 विग्रहपूर्वक जन्म धारण |
3 समय |
तीन विग्रहपूर्वक जन्मधारण |
पा̐चों मनोवचन योगी |
1 |
162 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
163-164 |
|
1 समय |
यथायोग्य 3 योग परिवर्तन, गुणस्थान परिवर्तन, मरण व व्याघात के पूर्व 11 भंग (देखो काल/5) |
अन्तर्मुहूर्त |
केवल योग परिवर्तन |
|
2 |
165 |
|
1 समय |
मूलोघवत् |
पल्य/असं. |
मूलोघवत् |
165 |
|
1 समय |
यथायोग्य 3 योग परिवर्तन, गुणस्थान परिवर्तन, मरण व व्याघात के पूर्व 11 भंग (देखो काल/5) |
6 आवली |
केवल योग परिवर्तन |
|
3 |
166-167 |
|
1 समय |
11 भंगों से योग परिवर्तन |
पल्य/असं. |
अविच्छिन्न प्रवाह |
168-169 |
|
1 समय |
यथायोग्य 3 योग परिवर्तन, गुणस्थान परिवर्तन, मरण व व्याघात के पूर्व 11 भंग (देखो काल/5) |
अन्तर्मुहूर्त |
इतने काल पश्चात् योग परिवर्तन |
|
4-7 |
162 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
163-164 |
|
1 समय |
उपरोक्तवत् परन्तु अप्रमत्त के व्याघात बिना के 10 भंग |
अन्तर्मुहूर्त |
इतने काल पश्चात् योग परिवर्तन |
|
8-12(उप0) |
170-171 |
|
1 समय |
11 भंगों से योग परिवर्तन |
अन्तर्मु0 |
योगपरिवर्तन |
172-173 |
|
1 समय |
व्याघात बिना उपरोक्त 10 भंग |
अन्तर्मुहूर्त |
इतने काल पश्चात् योग परिवर्तन |
|
8-12 क्षपक |
170-171 |
|
1 समय |
|
अन्तर्मु0 |
योगपरिवर्तन |
172-173 |
|
1 समय |
योग व गुणस्थान परिवर्तन के 9 भंग |
अन्तर्मुहूर्त |
इतने काल पश्चात् योग परिवर्तन |
|
13 |
162 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
163-164 |
|
1 समय |
विवक्षित योगसहित प्रवेश 1 समय पीछे योग परिवर्तन |
अन्तर्मुहूर्त |
इतने काल पश्चात् योग परिवर्तन |
काययोग सामान्य |
1 |
174 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
175-176 |
|
1 समय |
मरण व व्याघात रहित 9 भंग |
असं.पु.परिवर्तन |
एकेन्द्रियों में परिभ्रमण |
|
2-13 |
177 |
|
— |
मनोयोगीवत् |
— |
विच्छेदाभाव |
177 |
|
मनोयोगीवत् 3,4थें में भी मनोयोगवत् |
मरण व व्याघात रहित 9 भंग तथा 2,5,6ठें में केवल व्याघात रहित |
|
|
औदारिक |
1 |
178 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
179-180 |
|
1 समय |
मनोयोगीवत् 11 भंग |
22000 वर्ष-अप0काल |
पृथिवीकाय में परिभ्रमण |
|
2-13 |
181 |
|
— |
मनोयोगीवत् |
— |
— |
181 |
|
मनोयोगीवत् |
व्याघातवाले भंग का कहीं भी अभाव नहीं |
मनोयोगीवत् |
|
औदारिक मिश्र |
1 |
182 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
183-184 |
|
क्षुद्रभव से 3 समय कम |
3 विग्रह से उत्पन्न क्षुद्रभवधारी |
अन्तर्मुहूर्त |
ल0अप0के संख्यातभव करके पर्याप्त हो गया |
|
2 |
185-186 |
|
1 समय |
एक जीववत् ही 7 या 8 जीवों की युगपत् प्ररूपणा |
पल्य/असं |
अविच्छिन्न प्रवाह |
187-188 |
|
1 समय |
सासादन दृष्टि एक जीव स्वकाल में एक समय शेष रहने पर मिश्र योगी हो द्वितीय समय मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। |
1 समय कम 6 आवली |
जघन्यवत् |
|
4 |
189-190 |
|
अन्तर्मु0 |
7 या 8 असंयत नारकी औ0मि0योगी हो पर्याप्त हुए |
अन्तर्मु0 |
जघन्यवत् पर देव, नारकी व मनुष्य तीनों की अपेक्षा प्ररूपणा |
191-192 |
|
अन्तर्मु0 |
6ठी पृथिवी से आ मनुष्य हुआ, गर्भ में अल्प अन्तर्मुहूर्त काल तक ही अपर्याप्त रहा, फिर पर्याप्त हो गया |
अन्तर्मुहूर्त |
जघन्यवत् परन्तु सर्वार्थसिद्धि से आकर |
|
13 |
193-194 |
|
1 समय |
दण्ड समुद्घात से कपाट को प्राप्त हो पुन: दण्ड को प्राप्त हुआ |
सं0समय |
दण्ड व कपाट में परिवर्तन करने अनेक जीव |
195-196 |
|
1 समय |
दण्ड–कपाट समुद्घात मे आरोहण व अवतरण करते हुए कपाट समुद्घात गत केवली |
1 समय |
जघन्यवत् |
वैक्रियक |
1 |
196 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
197-198 |
|
1 समय |
मनो या वचन योगी विवक्षित गुणस्थानवर्ती वैक्रि.काय योगी हो 1समय पश्चात् या तो मर जाये या गुणस्थान परिवर्तन करे व्याघात रहित 10 भंग |
अन्तर्मुहूर्त |
विवक्षित गुणस्थान में ही योगपरिवर्तन करे |
वैक्रियक |
2 |
199 |
|
1 समय |
11 भंग |
पल्य/असं |
प्रवाह |
199 |
|
1 समय |
11 भंग लागू करने (देखो काल/5) |
6 आवली |
स्वकाल में 6 आ.रहने पर विवक्षित योग में प्रवेश |
|
3 |
200 |
|
1 समय |
11 भंग |
पल्य/असं |
प्रवाह |
200 |
|
1 समय |
11 भंग लागू करने (देखो काल/5) |
अन्तर्मुहूर्त |
इतने काल पीछे योग परिवर्तन |
|
4 |
196 |
|
— |
स्वमिथ्यादृष्टिवत् |
— |
|
197-198 |
— |
— |
स्व मिथ्यादृष्टिवत् |
— |
— |
वैक्रियकमिश्र |
1 |
201-202 |
|
अन्तर्मु0 |
7 या 8 द्रव्यलिंगी मुनि उपरिम ग्रैवेयक में जा इतने काल पश्चात् पर्याप्त हुआ |
पल्य/असं |
7 या 8 जीव देव या नरक में जा इतने काल पश्चात् पर्याप्त हुए |
203-204 |
|
अन्तर्मु0 |
उपरिम ग्रैवेयक में उपजने वाला द्रव्यलिंगी मुनि सर्व लघुकाल पश्चात् पर्याप्त हुआ |
अन्तर्मुहूर्त |
मनुष्य व तिर्यंच मिथ्यादृष्टि 7वीं पृथिवी में उपज इतने काल पश्चात् पर्याप्त हुआ |
|
2 |
205-206 |
|
1 समय |
गुणस्थान में 1 समय शेष रहने पर देवों में उपज सब मिथ्यात्वी हो गये |
पल्य/असं |
जघन्यवत् पर 1 समय से 6 आवली शेष रहते उत्पत्ति की प्ररूपणा |
207-208 |
|
1 समय |
सासादन में एक समय शेष रहने पर देवों में उत्पन्न हुआ। द्वितीय समय मिथ्यादृष्टि हो गया |
1 समय कम 6 आवली |
उपशम सम्यक्त्व के काल में छ: आवली शेष रहने पर कोई मनुष्य या तिर्यंच सासादन को प्राप्त हुआ। एक समय पश्चात् देव हुआ। 1समय कम छ: आवली पश्चात् मिथ्यादृष्टि हो गया। |
|
4 |
201-202 |
|
अन्तर्मु0 |
संयत 2 विग्रह से सर्वार्थ सिद्धि में उपज पर्याप्त हुए |
पल्य/असं |
उपरोक्त मिथ्यादृष्टिवत् |
203-204 |
|
अन्तर्मु0 |
कोई मुनि 2 विग्रह से सर्वार्थ सिद्धि में उपजा। इतने काल पश्चात् पर्याप्त हुआ |
अन्तर्मुहूर्त |
बद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव प्रथम पृथिवी में उपजा। इतने काल पश्चात् पर्याप्त हुआ। |
आहारक |
6 |
209-210 |
|
1 समय |
एक जीववत् युगपत् नाना जीव |
अन्तर्मु0 |
जघन्यवत् प्रवाह क्रम |
211-212 |
|
1 समय |
अविवक्षित से विवक्षित योग में आकर 1 समय पश्चात् मूल शरीर प्रवेश |
अन्तर्मुहूर्त |
जघन्यवत् |
आहारकमिश्र |
6 |
213-214 |
|
1 समय |
एक जीववत् युगपत् नाना जीव |
अन्तर्मु0 |
जघन्यवत् प्रवाह क्रम |
215-216 |
|
1 समय |
देखा है मार्ग जिन्होंने ऐसा जीव सर्वलघुकाल में पर्याप्त होता है |
अन्तर्मुहूर्त |
नहीं देखा है मार्ग जिसने ऐसा जीव इससे पहिले पर्याप्त न हो |
कार्माण |
1 |
217 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
218-219 |
|
1 समय |
मारणान्तिक समुद्घात पूर्वक 1 विग्रह से जन्म |
3 समय |
जघन्यवत् पर 3 विग्रह से जन्म |
|
2,4 |
220-221 |
|
1 समय |
एक जीववत् |
आ0/असं |
जघन्यवत् प्रवाह |
222-223 |
|
1 समय |
एक विग्रह से उत्पन्न होनेवाला जीव |
2 समय |
2 विग्रह से उत्पन्न होने वाला जीव |
|
13 |
224-225 |
|
3 समय |
एक जीववत् |
सं.समय |
जघन्यवत् प्रवाह |
226 |
|
3 समय |
कपाट से क्रमश: प्रतर-लोकपूर्ण-प्रतर |
3 समय |
जघन्यवत् |