नव बलदेव निर्देश
From जैनकोष
नव बलदेव निर्देश
1. पूर्व भव परिचय
क्रम |
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नाम निर्देश |
द्वितीय पूर्व भव |
प्रथम पूर्व भव (स्वर्ग) |
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1. ति.प./4/517,1411 2. त्रि.सा./827 3. प.पु./20/242 टिप्पणी 4. ह.पु./60/290 5. म.पु./पूर्ववत् |
1. प.पु./20/229-235 2. म.पु./पूर्ववत् |
1. प.पु./20/236-237 2. म.पु./पूर्ववत् |
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सामान्य |
विशेष प.पु. |
नाम |
नगर |
दीक्षा गुरु |
स्वर्ग |
||
1 |
57/86 |
विजय |
|
बल (विशाखभूति) |
पुण्डरीकिणी |
अमृतसर |
अनुत्तर विमान 2 महाशुक्र |
2 |
58/80-83 |
अचल |
|
मारुतवेग |
पृथ्वीपुरी |
महासुव्रत |
अनुत्तर विमान 2 महाशुक्र |
3 |
59/71,106 |
धर्म |
भद्र |
नन्दिमित्र |
आनन्दपुर |
सुव्रत |
अनुत्तर विमान 2 महाशुक्र |
4 |
60/58-63 |
सुप्रभ |
|
महाबल |
नन्दपुरी |
ऋषभ |
सहस्रार |
5 |
61/70,87 |
सुदर्शन |
|
पुरुषर्षभ |
वीतशोका |
प्रजापाल |
सहस्रार |
6 |
65/174-176 |
नन्दीषेण |
नन्दिमित्र |
सुदर्शन |
विजयपुर |
दमवर |
सहस्रार |
7 |
66/106-107 |
नन्दिमित्र |
नन्दिषेण |
वसुन्धर |
सुसीमा |
सुधर्म |
ब्रह्म 2 सौधर्म |
8 |
67/148-149 68/731 |
राम |
पद्म |
श्रीचन्द्र 2 विजय |
क्षेमा 2 मलय |
अर्णव |
ब्रह्म 2 सनत्कुमार |
9 |
|
पद्म |
बल |
सखिसज्ञ |
हस्तिनापुर |
विद्रुम |
महाशुक्र |
2. वर्तमान भव के नगर व माता पिता
क्रम |
म.पु./सर्ग/श्लो. |
नगर |
पिता |
माता |
गुरु |
तीर्थ |
|
म.पु./पूर्ववत् |
1. प.पु./20/238-239 2. म.पु./पूर्ववत् |
1.प.पु./20/236-237 2.म.पु./ पूर्ववत् |
|
||||
सामान्य |
विशेष |
||||||
म.पु. |
म.पु. |
||||||
1 |
57/86 |
पोदनपुर |
प्रजापति |
भद्राम्भोजा |
जयवती |
सुवर्णकुम्भ |
देखें तीर्थंकर |
2 |
58/80-83 |
द्वारावती |
ब्रह्म |
सुभद्रा |
सुभद्रा |
सत्कीर्ति |
|
3 |
59/71,106 |
द्वारावती |
भद्र |
सुवेषा |
सुभद्रा |
सुधर्म |
|
4 |
60/58-63 |
द्वारावती |
सोमप्रभ |
सुदर्शना |
जयवन्ती |
मृगांक |
|
5 |
61/70,87 |
खगपुर |
सिंहसेन |
सुप्रभा |
विजया |
श्रुतिकीर्ति |
|
6 |
65/174-176 |
चक्रपुर |
वरसेन |
विजया |
वैजयन्ती |
सुमित्र 2. शिवघोष |
|
7 |
66/106-107 |
बनारस |
अग्निशिख |
वैजयन्ती |
अपराजिता |
भवनश्रुत |
|
8 |
67/148-149 68/731 |
बनारस |
दशरथ (164) |
अपराजिता (काशिल्या) |
सुबाला |
सुव्रत |
|
9 |
|
पीछे अयोध्या |
वसुदेव |
रोहिणी |
|
सुसिद्धार्थ |
3. वर्तमान भव परिचय
क्रम |
म.पु./सर्ग/श्लोक |
शरीर |
उत्सेध |
आयु |
निर्गमन |
||||||
ति.प./4/1371 |
ति.प./4/1818; त्रि.सा./829 ह.पु./60/310; म.पु./पूर्ववत् |
1. ति.प./4/1419-1420 2. त्रि.सा./831 3. म.पु./पूर्ववत् |
ति.प./4/1437 त्रि.सा./833 प.पु./20/248 |
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वर्ण |
संस्थान |
संहनन |
सामान्य धनुष |
प्रमाण |
विशेष धनुष |
सामान्य वर्ष |
प्रमाण सं. |
विशेष वर्ष |
|||
1 |
57/89-90 |
ति.प.=स्वर्ण; म.पु.= सफेद |
समचतुरस्र |
वज्र ऋषभ नाराच |
80 |
|
|
87 लाख |
3 |
84 लाख |
मोक्ष |
2 |
58/89 |
70 |
|
|
77 लाख |
|
|
मोक्ष |
|||
3 |
59/- |
60 |
|
|
67 लाख |
|
|
मोक्ष |
|||
4 |
60/68-69 |
50 |
3 |
55 |
37 लाख |
3 |
30 लाख |
मोक्ष |
|||
5 |
61/71 |
45 |
3 |
40 |
17 लाख |
3 |
10 लाख |
मोक्ष |
|||
6 |
65/177-178 |
29 |
3,4 |
26 |
67000 वर्ष |
3 |
56000 वर्ष |
मोक्ष |
|||
7 |
66/108 |
22 |
|
|
37000 वर्ष |
3 |
32000 वर्ष |
मोक्ष |
|||
8 |
67/154 |
16 |
4 |
13 |
17000 वर्ष |
3 |
13000 वर्ष |
मोक्ष |
|||
9 |
|
10 |
|
|
12000 वर्ष |
3 |
1200 वर्ष |
ब्रह्म स्वर्ग |
|||
कृष्ण के तीर्थ में मोक्ष प्राप्त करेंगे। |
4. बलदेव का वैभव
म.पु./68/667-674 सीताद्यष्टसहस्राणि रामस्य प्राणवल्लभा:। द्विगुणाष्टसहस्राणि देशास्तावन्महीभुज:।667। शून्यं पञ्चाष्टरन्ध्रोक्तख्याता द्रोणमुखा: स्मृता:। पत्तनानि सहस्राणि पञ्चविंशतिसंख्यया।668। कर्वटा: खत्रयद्वयेकप्रमिता:, प्रार्थितार्थदा:। मटम्बास्तत्प्रमाणा: स्यु: सहस्राण्यष्ट खेटका:।669। शून्यसप्तकवस्वब्धिमिता ग्रामा महाफला:। अष्टाविंशमिता द्वीपा: समुद्रान्तर्वतिन:।670। शून्यपञ्चकपक्षाब्धिमितास्तुङ्गमतङ्गजा:। रथवर्यास्तु तावन्तो नवकोट्यस्तुरङ्गमा:।671। खसप्तकद्विर्वार्घ्युक्ता युद्धशौण्डा: पदातय:। देवाश्चाष्टसहस्राणि गणबद्धाभिमानका:।672। हलायुधं महारत्नमपराजितनामकम् । अमोघाख्या: शरास्तीक्ष्णा: संज्ञया कौमुदी गदा।673। रत्नावतंसिका माला रत्नान्येतानि सौरिण:। तानि यक्षसहस्रेण रक्षितानि पृथक्-पृथक् ।674। = रामचन्द्र जी (बलदेव) के 8000 रानियाँ, 16000 देश, 16000 आधीन राजा, 9850 द्रोणमुख, 25000 पत्तन, 12000 कर्वट, 12000 मटंब, 8000 खेटक, 48 करोड़ गाँव, 28 द्वीप, 42 लाख हाथी, 42 लाख रथ; 9 करोड़ घोड़े, 42 करोड़ पदाति, 8000 गणबद्ध देव थे।666-672। रामचन्द्र जी के अपराजित नाम का ‘हलायुध’ अमोघ नाम के तीक्ष्ण ‘बाण’, कौमुदी नाम की ‘गदा’ और रत्नावतंसिका नाम की ‘माला’ ये चार महारत्न थे। इन सब रत्नों की एक-एक हज़ार यक्ष देव रक्षा करते थे।672-674। (ति.प./4/1435); (त्रि.सा./825); (म.पु./57/90-94)।
5. बलदेवों सम्बन्धी नियम
ति.प./4/1436 अणिदाणगदा सव्वे बलदेवा केसवा णिदाणगदा। उड्ढंगामी सव्वे बलदेवा केसवा अधोगामी।1436।
सब बलदेव निदान से रहित होते हैं और सभी बलदेव ऊर्ध्वगामी अर्थात् स्वर्ग व मोक्ष को जाने वाले होते हैं। (ध.9/1,9-9,243/500/9); (ह.पु./60/293)।
शलाका पुरुष/1/2-5 बलदेवों का परस्पर मिलान नहीं होता, तथा एक क्षेत्र में एक समय में एक ही बलदेव होता है।