पृथक्त्व
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
- अन्यत्व के अर्थ में।
प्र.सा./त.प्र./106 प्रविभक्तप्रदेशत्वं हि पृथक्त्वरस लक्षणम्। = विभक्त (भिन्न) प्रदेशत्व पृथक्त्व का लक्षण है।
द्र.सं./टी./48/203/6 द्रव्यगुणपर्यायाणां भिन्नत्वं पृथक्त्वं भण्यते। = द्रव्य, गुण और पर्याय के भिन्नपने को पृथक्त्व कहते हैं।
- एक से नौ के बीच की गणना
स.सि./1/8/34/4 पृथक्त्वमित्यागमसंज्ञा तिसृणां कोटीनामुपरिनवानामधः। = पृथक्त्व यह आगमिक संज्ञा है। इससे तीन से ऊपर और नौ के नीचे मध्य की किसी संख्या का बोध होता है।
पुराणकोष से
(1) तीन से ऊपर और नौ से नीचे की संख्या । महापुराण 5.286
(2) विचारों की अनेकता या नानात्व पृथक्त्व कहलाता है । योगों से क्रान्त होकर यह पृथक्त्व ध्यान का विषय बन जाता है । हरिवंशपुराण 56. 57