पोत
From जैनकोष
स.सि./2/33/190/1 किंचित्परिवरणमन्तरेण परिपूर्णावयवो योनि-निर्गतमात्र एव परिस्पन्दादिसामर्थ्योपेतः पोतः। = जिसके सब अवयव बिना आवरण के पूरे हुए हैं और जो योनि से निकलते ही हलन-चलन आदि सामर्थ्य से युक्त हैं, उसे पोत कहते हैं। (रा.वा./2/33/3/144/1); (गो.जी./जी.प्र./84/207/5)।
- पोतज जन्म विषयक - देखें जन्म - 2।