बुद्ध
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
- बुद्ध सामान्य का लक्षण
प.प्र./टी./1/13/21/5 बुद्धोऽनन्तज्ञानादिचतुष्टयसहित इति । = केवलज्ञानादि अनन्तचतुष्टय सहित होने से अपना बुद्ध है । (द्र. सं./चूलिका/28/80/1) ।
भा.पा./टी./149/293/14 बुद्ध्यत सर्व जानातीति बुद्धः । = बुद्धि के द्वारा सब कुछ जानता है, इसलिए बुद्ध है ।
- प्रत्येकबुद्ध व बोधितबुद्ध के लक्षण
स.सि./10/9/472/9 स्वशक्तिपरोपदेशनिमित्तज्ञानभेदात् प्रत्येकबुद्ध-बोधितविकल्पाः । = अपनी शक्तिरूप निमित्त से होने वाले ज्ञान के भेद से प्रत्येकबुद्ध होते हैं । और परोपदेशरूप निमित्त से होने वाले ज्ञान के भेद से बोधितबुद्ध होते हैं । (रा.वा./10/9/8/647/11) ।
ति. प./4/1022 कम्माण उवसमेणय गुरूवदेसं विणा वि पावेदि । सण्णाणतवप्पगमं जोए पत्तेयबुद्धी सा ।1022। = जिसके द्वारा गुरु उपदेश के बिना ही कर्मों के उपशम से सम्यग्ज्ञान और तप के विषय में प्रगति होती है, वह प्रत्येकबुद्धि ऋद्धि कहलाती है । (रा.वा./3/36/3/202/24); (भ.आ./वि./34/125/11) ।
- स्वयं बुद्ध का लक्षण - देखें स्वयंभू ।1।
पुराणकोष से
भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभ देव का एक नाम । महापुराण 24.38, 25.108