अपूर्वार्थ
From जैनकोष
(परीक्षामुख परिच्छेद संख्या १/४-५)-अनिश्चितोऽपूर्वार्थ ।।४।। दृष्टोऽपि समारोपात्तादृक् ।।५।।
= जो पदार्थ पूर्वमें किसी भी प्रमाण द्वारा निश्चित न हुआ हो उसे अपूर्वार्थ कहते हैं ।।४।। तथथा यदि किसी प्रमाणसे निर्णीत होनेके पश्चात् पुनः उसमें संशय, विपर्यय अथवा अनध्यवसाय हो जाये तो उसे भी अपूर्वार्थ समझना ।।५।।