जरासंध
From जैनकोष
राजगृह नगर के राजा वृहद्रथ और श्रीमती का पुत्र, नवाँं प्रतिनारायण । इसकी एक पुत्री का नाम केतुमती था जो जितशत्रु को विवाही गयी थी । केतुमती को किसी मन्त्रवादी परिव्राजक ने अपने वश में कर लिया था किन्तु वसुदेव ने महामन्त्रों के प्रभाव से उसके पिशाच का निग्रह किया था । इसके घातक के सम्बन्ध में भविष्यवाणी थी कि जो इस राजपुत्री के पिशाच को दूर करेगा उसका पुत्र इसका घातक होगा । इस भविष्यवाणी से इसके सैनिकों ने वसुदेव को पकड़ लिया था किन्तु उसी समय कोई विद्याधर उसे वहाँ से उठाकर ले गया था । पद्मपुराण 20. 242-244, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.114-115 समुद्रविजय आदि राजाओं के साथ रोहिणी-स्वयंवर मे न केवल यह आया था अपितु इसके पुत्र भी आये थे । समुद्रविजय को वसुदेव से युद्ध करने के लिए इसी ने कहा था और युद्ध के परिणाम स्वरूप सौ वर्ष से बिछुड़े हुए भाई वसुदेव से समुद्रविजय की भेंट हुई थी । हरिवंशपुराण 31. 18,21-23, 50. 45-51, 99-128 सुरम्य देश के मध्य में स्थित पोदनपुर का राजा सिहर इसका शत्रु था । इसने इस शत्रु को बाँधकर लाने वाले को आधा देश तथा अपनी रानी कलिन्दसेना से उत्पन्न जीवद्यशा पुत्री देने की घोषणा की थी । वसुदेव ने सिंहरथ को जीतकर तथा केस से बँधवाकर इसे सौंप दिया था । घोषणा के अनुसार इसने
जीवंद्यशा को वसुदेव को देना चाहा किन्तु उसे सुलक्षणा न जानकर वसुदेव ने यह कहकर टाल दिया था कि सिंहरथ को उसने नहीं बाँधा । कंस ने बाँधा है । इसने कंस को राजा उग्रसेन और पद्मावती का पुत्र जानकर उसे पुत्री और आधा राज्य दे दिया । कंस को अपना भानजा जानकर यह प्रसन्न हुआ था । हरिवंशपुराण 33.24 यही कंस कृष्ण के द्वारा मारा गया । कंस के मरने से व्याकुलित पुत्री जीवंद्यशा ने इसे क्षुभित किया । परिणामस्वरूप इसके कालयवन नामक पुत्र ने यादवों के साथ सत्रह बार भयंकर युद्ध किया और अन्त में युद्ध में मारे जाने पर इसके भाई अपराजित ने युद्ध किया । तीन सौ छियालीस बार युद्ध करने पर भी अन्त में यह भी कृष्ण के बाणों से निष्प्राण हुआ । हरिवंशपुराण 36.45, 65-73 इसने यादवों से सन्धि कर ली थी । किन्तु कृष्ण का नाम सुनकर यह सन्धि से विमुख हो गया था । समुद्रविजय ने इसे समझाने और सन्धि न तोड़ने के लिए अपने दूत लोहजंघ को भेजा । लोहजंघ ने कुशलता से इसे समझा दिया । इसने छ: मास तक सन्धि को बनाये रखा । पर एक वर्ष पूर्ण होते ही यह कुरुक्षेत्र के मैदान में ससैन्य आ पहुँचा । हरिवंशपुराण 50.9,71-65 कालयवन आदि संन्यासी पुत्र भी युद्ध में सम्मिलित हुए । कृष्ण के अर्धचन्द्र बाणों से ये सब मारे गये थे । कालयवन को सारन नामक योद्धा ने मार गिराया था । इसने कृष्ण को मारने के लिए चक्र चलाया था । यही चक्र कृष्ण ने फेंककर इसे प्राण रहित कर दिया था । इसी युद्ध में कौरव पाण्डवों से मारे गये थे । महापुराण 70.352-366,71.76-77, 115,72.218-222, हरिवंशपुराण 52.30-83, पांडवपुराण 7.147-949, 19 वां पर्व, 20. 266, 296, 348-350