अप्रत्याख्यानवरण
From जैनकोष
1. अप्रत्याख्यानावरण कर्मका लक्षणसर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/9/386/7 यदुदयाद्देशविरतिं संयमासंयमाख्यामल्पामपि कर्तुं न शक्नोति ते देशप्रत्याख्यानमावरणवन्तोऽप्रत्याख्यानावरणाः क्रोधमानमायालोभाः।= जिनके उदयसे संयमासंयम नामवाले देशविरतिको यह जीव स्वल्प भी करनेमें समर्थ नहीं होता है वे देशप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ हैं। (राजवार्तिक अध्याय 8/9/5/575/1) ( धवला पुस्तक 6/1-9,1,23/4,4/4) ( धवला पुस्तक 13/5,5,95/360/10) ( गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 45/46/12) ( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/28/4) ( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 283/608/14)• अप्रत्याख्यानावरण प्रकृतिकी बंध उदय सत्त्व प्ररूपणाएँ व तत्सम्बन्धी नियम व शंका समाधान।-देखें वह वह नाम ।• अप्रत्याख्यानावरणका सर्वघातीपना-देखें अनुभाग - 4।• अप्रत्याख्यानावरणमें दशों करणोंकी संभावना।-देखें करण - 2।2. अप्रत्याख्यानावरण कषाय देशव्रतको घातती हैपंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार 1/115 पढमो दंसणघाई बिदिओ तह घाइ देसविरइ त्ति।= प्रथम अनन्तानुबन्धी तो सम्यग्दर्शनका घात करती है, और द्वितीय अप्रत्याख्यानावरण कषाय देशविरतिकी घातक है।( गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा 45/46) ( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / मूल गाथा 283/608) (पंचसंग्रह / संस्कृत / अधिकार 1/205)3. अप्रत्याख्यानावरण कषायका वासना कालगोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा 46/47 अन्तर्मुहूर्तः पक्षः षण्मासाः संख्यासंख्यायानन्तभवाः। संज्वलनाद्यानां वासनाकालः तू नियमेन। अप्रत्याख्यानावरणानां षण्मासाः।= संज्वलनादि कषायोंका वासनाकाल नियमसे अन्तर्मुहूर्त, एक पक्ष, छः मास तथा संख्यात असंख्यात व अनन्त भव है। अप्रत्याख्यानावरणका छः मास है।• कषायोंकी तीव्रता मन्दतामें अप्रत्याख्यानावरण नहीं बल्कि लेश्या कारण है।-देखें कषाय - 3।