अंतकृत्
From जैनकोष
धवला पुस्तक 6/1,9-9,216/490/1 अष्टकर्मणामन्तं विनाशं कुर्वन्तीति अन्तकृतः। अन्तकृतो भूत्वा सिज्झंति सिद्ध्यन्ति निस्तिष्ठन्ति निष्पद्यन्ते स्वरूपेणेत्यर्थः। बुज्झंति त्रिकालगोचरानन्तार्थव्यञ्जनपरिणामात्मकाशेषवस्तुतत्त्वं बुद्ध्यन्ति अवगच्छन्तीत्यर्थः। = जो आठ कर्मों का अन्त अर्थात् विनाश करते हैं वे अन्तकृत् कहलाते हैं। अन्तकृत् होकर सिद्ध होते हैं, निष्ठित होते हैं व अपने स्वरूप से निष्पन्न होते हैं, ऐसा अर्थ जानना चाहिए। `जानते हैं, अर्थात् त्रिकालगोचर अनन्त अर्थ और व्यञ्जन पर्यायात्मक अशेष वस्तु तत्त्व को जानते व समझते हैं'।