अर्धमागधी
From जैनकोष
सब भाषाओं मे परिणमनशील भाषा । यह भाषा सर्व अक्षररूप दिव्य अंग वाली, समस्त अक्षरों की निरूपक, सभी को आनन्द देने वाली और सन्देह नाश करने वाली है । इस माथा में तीर्थंकरों ने धर्म और अन्याय को प्रकट किया है । हरिवंशपुराण 3.16, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.62-63