असद्वेद्यास्रव
From जैनकोष
असाताकारी आस्रव । निज और पर दोनों के विषय में होने व दु:ख, शोक, वध, आक्रन्दन, ताप और परिवेदन ये इस आस्रव के द्वार हैं । हरिवंशपुराण 58.93
असाताकारी आस्रव । निज और पर दोनों के विषय में होने व दु:ख, शोक, वध, आक्रन्दन, ताप और परिवेदन ये इस आस्रव के द्वार हैं । हरिवंशपुराण 58.93