काससौकरिक
From जैनकोष
यह पूर्वभव में मनुष्य आयु को बाँधकर नीच गोत्र के उदय से राजगृह नगर में नीचकुल में उत्पन्न हुआ था । इसके सम्बन्ध में गौतम गणधर ने श्रेणिक से कहा था कि इसे जातिस्मरण हुआ है, अत: यह विचार में लगा है कि यदि पुण्य-पाप के फल से जीवों का सम्बन्ध होता है तो पुण्य के बिना इसने मनुष्य-जन्म कैसे प्राप्त कर लिया । इसलिए न पुण्य है, न पाप । इन्द्रियों के विषय से उत्पन्न हुआ वैषयिक सुख ही कल्याण कारक है ऐसा मानकर यह पापात्मा निःशंक होकर हिंसा आदि पाँचों पापों को करने से नरकायु का बन्ध हो जाने के कारण जीवन के अन्त में सातवें नरक में जायेगा । महापुराण 74.454-460, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.159-166