कृत्
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/6/8/625/4 कृत् वचनं स्वातन्त्र्यप्रतिपत्त्यर्थम् =कर्ता की कार्य विषयक स्वतन्त्रता दिखलाने के लिए सूत्र में कृत् वचन दिया है। ( राजवार्तिक/6/8/7/514 ) राजवार्तिक/6/8/7/514/7 स्वातन्त्र्यविशिष्टेनात्मना यत्प्रादुर्भावितं तत्कृतमित्युच्यते।=आत्मा ने जो स्वतन्त्र भाव से किया वह कृत् है ( चारित्रसार/88/5 )।