योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 98
From जैनकोष
गुणस्थान संबंधी विभिन्न मान्यता -
देहचेतनयोरैक्यं मन्यमानैर्विोहितै: ।
एते जीवा निगद्यन्ते न विवेक-विशारदै: ।।९७।।
अन्वय :- देहचेतनयो: ऐक्यं मन्यमानै: विमोहितै: एते (त्रयोदश-गुणा:) जीवा: निगद्यन्ते; न विवेक-विशारदै: ।
सरलार्थ :- शरीर और आत्मा इन दोनों को एक माननेवाले मोहीजन गुणस्थानों को जीव कहते हैं अर्थात् मानते हैं; परन्तु भेदविज्ञान में निपुण विवेकी जन गुणस्थानों को पुद्गलरूप अजीव बतलाते हैं ।