योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 122
From जैनकोष
कर्म में जीव के स्वभाव का आच्छादन करने का उदाहरण -
जीवस्याच्छादकं कर्म निर्मलस्य मलीमसम् ।
जायते भास्करस्येव शुद्धस्य घन-मण्डलम् ।।१२२।।
अन्वय :- शुद्धस्य भास्करस्य घन-मण्डलं इव मलीमसं कर्म निर्मलस्य जीवस्य आच्छादकं जायते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार घनमण्डल अर्थात् बादलों का समूह निर्मल सूर्य का आच्छादक हो जाता है, उसीप्रकार से निर्मल जीव के स्वभाव का, स्वभाव से मलीन कर्म आच्छादक होता है ।