जयांगण
From जैनकोष
समवसरण की वापिकाओं के आगे का रमणीक स्थान । यह एक कोस लम्बा और एक योजन चौड़ा है । इसकी भूमि रत्नचूर्ण से निर्मित है । यहाँ अनेक भवन और मण्डप है । मण्डपों में अनेक कथानकों के चित्र है । इसके मध्य में सुवर्णमय पीठ पर इन्द्रध्वज कराता है । हरिवंशपुराण 75.75-85