चिन्तागति
From जैनकोष
(1) पुष्करार्ध द्वीप में गन्धिल देश की विजयार्ध उत्तरश्रेणी में स्थित सूर्यप्रभनगर के राजा सूर्यप्रभ और उनकी रानी धारिणी का ज्येष्ठ पुत्र । यह मनोगति और चपलगति का भाई था । यह नेमिनाथ के सातवें पूर्वभव का जीव था । विजया उत्तरश्रेणी-स्थित अरिन्दमपुर नगर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेन की पुत्री प्रीतिमती द्वारा गतियुद्ध में अपने दोनों छोटे भाइयों के हराये जाने पर इसने उसे पराजित किया था । प्रीतिमती ने पहले इसके छोटे भाइयों को प्राप्त करने की इच्छा से उनके साथ गतियुद्ध किया था अत: प्रीतिमती को इसने स्वयं स्वीकार नहीं किया । अपने छोटे भाई को माला पहनाने के लिए कहा । प्रीतिमती ने इसके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया । प्रीतिमती ने इसे ही माला पहिनाना चाही । जब इसने प्रीतिमती को स्वीकार नहीं किया तो वह विवृता नामक आर्यिका के पास दीक्षित हो गयी । प्रीतिमती के संयम धारण कर लेने से विरक्त होकर इसने भी अपने भाइयों के साथ दमवर नामक गुरु के पास संयम धारण कर लिया । आठों शुद्धियों को प्राप्त कर अपने दोनों भाइयों सहित यह सामानिक जाति का देव हुआ । महापुराण 70. 26-37, हरिवंशपुराण 34.15-33
(2) प्रतिनारायण अश्वग्रीव का दूत । महापुराण 62.124
(3) राक्षसवंश का एक विद्यानुयोग में कुशल राजा । इसने भानुगति से राज्य प्राप्त किया था । पद्मपुराण 5.393, 400-401
(5) महालोचन नामक गरुडेन्द्र द्वारा प्रेषित लंका का एक देव । जब रावण के पुत्रों ने सुग्रीव और भामण्डल को नागपाश से बांध कर निश्चेष्ट कर दिया था तब राम और लक्ष्मण ने गरुडेन्द्र का स्मरण किया । गरुडेन्द्र ने इस देव को भेजा और इसके द्वारा राम को सिंहवाहिनी विद्या तथा लक्ष्मण को गरुडवाहिनी विद्या दी गया । सुग्रीव और भामण्डल पाश से मुक्त हुए । पद्मपुराण 60. 131-135
(5) गन्धर्वपुर के राजा मन्दरमाली और रानी सुन्दरी का विद्याधर पुत्र । यह मनोगति का सहोदर तथा चक्रवर्ती वज्रदन्त का प्रियमित्र था । वज्रदन्त की भार्या लक्ष्मीमती ने सन्देश-पत्र देकर अपने जमाता और पुत्री को बुलाने लिए इसे उनके पास भेजा था । महापुराण 8.89-99