भव्य
From जैनकोष
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की प्राप्ति पूर्वक मोक्ष पाने की योग्यता रखने वाला जीव । यह देशनालब्धि और काललब्धि आदि बहिरंग कारण तथा करणलब्धि रूप अन्तरंग कारण पाकर प्रयत्न करने पर सिद्ध हो जाता है । जो प्रयत्न करने पर भी सिद्ध नहीं हो पाते वे अभव्य कहलाते हैं । महापुराण 4.88, 9.116, 24. 128, 71.196-197, पद्मपुराण 2, 155-157, हरिवंशपुराण 3.101