विद्युत्प्रभ
From जैनकोष
(1) मेरु के दक्षिण-पश्चिम कोण में स्थित स्वर्णमय एक पर्वत । इसके नौ कूट हैं― 1. सिद्धकूट 2. विद्युत्प्रभकूट 3. देवकुरुकूट 4. पद्ममककूट 5. तपनकूट 6. स्वस्तिककूट 7. शतज्वलकूट 8. सीतोदाकूट और 9. हरिसहकूट । हरिवंशपुराण 5.212, 222-223
(2) इस नाम के पर्वत का दूसरा कूट । हरिवंशपुराण 5.222
(3) यदुवंशी राजा अन्धकवृष्णि के पुत्र राजा हिमवान् का प्रथम पुत्र । माल्यवान् और गन्धमादन इसके भाई थे । हरिवंशपुराण 48.47
(4) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित चौथा नगर । महापुराण 19.78, 87, हरिवंशपुराण 22.90
(5) हेमपुर नगर के राजा कनकद्युति का पुत्र । राजा महेन्द्र ने अल्पायु जानकर इसे अपनी पुत्री अंजन को देने योग्य नहीं समझा था । पद्मपुराण 15. 85
(6) चक्रवर्ती भरतेश के कुण्डल । महापुराण 37. 157
(7) जम्बूद्वीप के प्रसिद्ध सोलह सरोवरों में ग्यारहवाँ सरोवर । महापुराण 63. 199
(8) चार गजदन्त पर्वतों में तीसरा पर्वत । यह अनादिनिधन है । महापुराण 63. 205
(9) पोदनपुर नगर के राजा विद्युद्राज का पुत्र । इसका अपर नाम विद्युच्चोर था । महापुराण 76. 53-55 देखें विद्युच्चोर
(10) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में सुरेन्द्रकान्तार नगर के राजा मेघवाहन और रानी मेघमालिनी का पुत्र । यह ज्योतिर्माला का भाई था । दूसरे पूर्व भव में यह वत्सकावती देश में प्रभाकरी नगरी के राजा नन्दन का पुत्र विजयभद्र और प्रथम पूर्व भव में माहेन्द्र स्वर्ग के चक्रक विमान में देव था । महापुराण 62. 71-72, 75-78, पांडवपुराण 4. 29-35
(11) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में रथनूपुर नगर का नृप एक विद्याधर । इसके दो पुत्र थे― इन्द्र और विद्युन्माली । इन पुत्रों में इन्द्र को राज्य सौंपकर तथा विद्युन्माली को युवराज बनाकर यह दीक्षित हो गया था । पांडवपुराण 17. 43-45