परिदेवन
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/6/11/329/2 संक्लेशपरिणामावलम्बनं गुणस्मरणानुकीर्तनपूर्वकं स्वपरानुग्रहाभिलाषविषय-मनुकम्पाप्रचुरं रोदनं परिदेवनम्। = संक्लेशरूप परिणामों के होने पर गुणों का स्मरण और दूसरे के उपकार की अभिलाषा, करुणाजनक रोना परिवेदन है। ( राजवार्तिक/6/11/6/519/31 )।