प्रतिबुद्धता
From जैनकोष
- क्षण लव प्रतिबुद्धता का लक्षण
धवला/8/3,41/85/10 खण-लवा णाम कालविसेसा । सम्मद्दंसण-णाण-वद-सील-गुणाणमुज्जालणं कलंक-पक्खालणं संधुक्खणं वा पडिबुज्झणं णाम, तस्य भावो पडिबुज्झणदा । खण-लवं पडि पडिबुज्झणदा खणलवपडिबुज्झणदा । = क्षण और लव ये काल विशेष के नाम हैं । सम्यग्दर्शन, ज्ञान, व्रत और शील गुणों को उज्ज्वल करने, मल को धोने, अथवा जलाने का नाम प्रतिबोधन है और इसके भाव का नाम प्रतिबोधनता है । प्रत्येक क्षण व लव में होने वाले प्रतिबोध को क्षणलव प्रतिबुद्धता कहा जाता है ।
- एक इसी भावना में शेष भावनाओं का समावेश
धवला/8/3,41/85/12 तीए एक्काए वि तित्थयरणामकम्मस्स बंधो । एत्थ वि पुव्वं व सेसकारणाणमंतब्भावो दरिसेदव्वो । तदो एदं तित्थयरणामकम्मबंधस्स पंचमं कारणं । = उस एक ही क्षण-लव प्रतिबुद्धता से तीर्थंकर नामकर्मका बन्ध होता है । इसमें भी पूर्व के समान शेष कारणों का अन्तर्भाव दिखलाना चाहिए । इसलिए यह तीर्थंकर नामकर्म के बन्ध का पाँचवाँ कारण है ।