भद्रशाल
From जैनकोष
मेरु पर्वत का एक वन । मेरु पर्वत के चारों ओर स्थित यह वन तीन कोट और ध्वजाओं से भूषित चार ध्वजाओं से शोभायमान है । यह मेरु की पूर्व-पश्चिम दिशा में नाना प्रकार के वृक्षों और लताओं से व्याप्त है । इसकी पूर्व-पश्चिम भाग की लम्बाई बाईस हजार योजन और दक्षिण-उत्तर भाग की चौड़ाई ढाई सौ योजन है । पूर्व-पश्चिम भाग में एक वेदिका है जो एक योजन ऊंची, एक कोस गहरी और दो कोस चौड़ी है । महापुराण 5. 182, पद्मपुराण 6.135, हरिवंशपुराण 5.209, 236-238, वीरवर्द्धमान चरित्र 8.109