उत्तरकुरु
From जैनकोष
१. विदेह क्षेत्रमें स्थित उत्तम भोगभूमि है। इसके उत्तरमें नील पर्वत, दक्षिणमें सुमेरु, पूर्वमें माल्यवान गजदन्त और पश्चिममें गन्धमादन गजदन्त पर्वत स्थित है। - देखे लोक ३/१२।२. उत्तरकुरु सम्बन्धी कुछ विशेषताएँ - दे. भूमि ५।
(जंबूदीव-पण्णत्तिसंगहो / प्रस्तावना १४०/A.N. Up. & H. L. Jain) दूसरी सदीके प्रसिद्ध इतिहासज्ञ `टालमी' के अनुसार `उत्तर कुरु' पामीर देशमें अवस्थित है। ऐतरेय ब्राह्मणके अनुसार यह हिमवानके परे है। इण्डियन ऐंटिक्वेरी १९१९ पृ. ६५ के अनुसार यह शकों और हूणोंके सीमान्त थियानसान पर्वतके तले था। वायुपुराण ४५-५८ के अनुसार "उत्तराणां कुरूणां तु पार्श्वे ज्ञेयं तु दक्षिणे। समुःमूर्मिमालाढ्य नानास्वरविभूषितम्।" इस श्लोकके अनुसार उत्तरकुरु पश्चिम तुर्किस्तान ठहरता है, क्योंकि, उसका समुद्र `अरलसागर' जो प्राचीनकालमें कैप्सियनसे मिला हुआ था, वस्तुतः प्रकृत प्रदेशके दाहिने पार्श्वमें पड़ता है। श्री राय कृष्णदासके अनुसार यह देश थियासानके अंचलमें बसा हुआ है।