मरुभूति
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
महापुराण/73/ श्लोक–भरतक्षेत्र पोदनपुर निवासी विश्वभूति ब्राह्मण का पुत्र था। (7-9)। कमठ इसका बड़ा भाई था, जिसने इसकी स्त्री पर बलात्कार करने के हेतु इसे मार डाला था। यह मरकर सल्लकी वन में वज्रघोष नामक हाथी हुआ। (11-12)। यह पार्श्वनाथ भगवान् का पूर्व का 9वाँ भव है।–देखें पार्श्वनाथ ।
पुराणकोष से
(1) चंपापुरी के वैश्य चारुदत्त का मित्र । हरिवंशपुराण 21. 6-13
(2) तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पूर्वभव के जीव । पूर्वभवों में ये जंबूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में पोदनपुर नगर के ब्राह्मण विश्वभूति और उसकी स्त्री अनुंधरी के कनिष्ठ पुत्र थे । कमठ इनका बड़ा भाई था । दुराचारी होने से कमठ ने इसकी पत्नी वसुंधरी के निमित्त इन्हें मार डाला था । ये मरकर मलय देश के कुब्जक नामक सल्लकी वन में वज्रघोष नामक हाथी हुए । इस पर्याय में पूर्व पर्याय के भाई कमठ की स्त्री वरुणा मरकर इनकी स्त्री हुई । हाथी की पर्याय में इन्होंने प्रोषधोपवास किये । एक दिन ये वेगवती नदी में पानी पीने गये । वहाँ कीचड़ में धस गये । कमठ मरकर इसी नदी में कुक्कुट सांप हुआ था । पूर्व वैरवश उसने इन्हें काटा जिससे मरकर ये सहस्रार स्वर्ग में देव हुए । स्वर्ग से चयकर ये विदेहक्षेत्र में त्रिलोकोत्तम नगर के राजा विद्युद्गति और रानी विद्युन्माला के पुत्र रश्मिवेग हुए । इन्होंने इस पर्याय में दीक्षा धारण कर तप किया । ये हिमगिरि पर्वत की जिस गुहा में ध्यानरत थे वहीं कमठ का जीव कुक्कुट सर्प नरक से निकल अजगर हुआ । पूर्व बैर के कारण अजगर ने इन्हें निगल लिया । ये मरकर अच्युत स्वर्ग के पुष्पक विमान में देव हुए और स्वर्ग से चयकर विदेहक्षेत्र के अश्वपुर नगर में चक्रवर्ती राजा वज्रनाभि हुए । दीक्षित होकर जब वज्रनाभि तप कर रहे थे तब कुरंग नामक भील पर्याय में कमठ ने इन पर अनेक उपसर्ग किये थे । वज्रनाभि धर्मध्यान से मरकर मध्यम ग्रैवेयक विमान में अहमिंद्र हुए । स्वर्ग से चयकर ये देव अयोध्या नगरी में आनंद राजा हुए । इस पर्याय में इन्होंने मुनि विपुलमति से धर्मश्रवण किया तथा मुनि समुद्रगुप्त से दीक्षा धारण की थी । क्षीरवन में कमठ के जीव सिंह ने इन्हें मार डाला था । मरकर ये आनत स्वर्ग के इंद्र हुए । इस स्वरों से चयकर ये बनारस में राजा विश्वसेन के पुत्र हुए । इस पर्याय में इनका नाम पार्श्वनाथ था । ये जब वन में ध्यानस्थ थे कमठ के जीव शंबर देव ने उन पर अनेक उपसर्ग किये थे । इस पर्याय में धरणेंद्र और पद्मावती ने इनकी सहायता की थी । इन्होंने कर्मों का नाश कर इस पर्याय में केवलज्ञान प्रकट किया और इसी पर्याय से मोक्ष पाया था । कमठ का जीव शंबर देव भी काललब्धि पाकर संयमी हो गया था । महापुराण 73. 6-147