रैनमंजूसा
From जैनकोष
हंसद्वीप के राजा कनककेतु की पुत्री थी। सहस्रकूट चैत्यालय के कपाट उघाड़ने से श्रीपाल से विवाही गयी थी। फिर धवलसेठ के इस पर मोहित होने पर धर्म में स्थित रही। अन्त में दीक्षा ले, तपकर स्वर्ग सिधारी। (श्रीपालचरित्र)।
हंसद्वीप के राजा कनककेतु की पुत्री थी। सहस्रकूट चैत्यालय के कपाट उघाड़ने से श्रीपाल से विवाही गयी थी। फिर धवलसेठ के इस पर मोहित होने पर धर्म में स्थित रही। अन्त में दीक्षा ले, तपकर स्वर्ग सिधारी। (श्रीपालचरित्र)।