विष्णुदत्त
From जैनकोष
बृ.कथा कोष/कथा 3/पृ.एक दरिद्र अन्धा था।5। वृक्ष से सर टकराने के कारण आँखें खुल गयीं।5। दूसरे अन्धों ने भी उसकी नकल की पर सब मर गये।9।
बृ.कथा कोष/कथा 3/पृ.एक दरिद्र अन्धा था।5। वृक्ष से सर टकराने के कारण आँखें खुल गयीं।5। दूसरे अन्धों ने भी उसकी नकल की पर सब मर गये।9।