देवावतार
From जैनकोष
पूर्व मालव देश का एक तीर्थ । जरासंध से संधि करने के लिए समुद्रविजय द्वारा ससैन्य प्रेषित कुमारलोहजंघ ने तिलकानंद और नंदन मुनियों को यहीं आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । तभी से यह स्थान इस नाम से प्रख्यात हो गया । हरिवंशपुराण 50.56-60