ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 29
From जैनकोष
दंसण अणंत णाणे मोक्खो णट्ठट्ठकम्मबंधेण ।
णिरुवमगुणमारूढो अरहंतो एरिसो होइ ॥२९॥
दर्शनं१ अनन्तं ज्ञानं मोक्ष: नष्टानष्टकर्मबन्धेन ।
निरुपमगुणमारूढ: अर्हन् ईदृशो भवति ॥२९॥
इसप्रकार ही कथन आगे करते हैं । प्रथम ही नाम को प्रधान करके कहते हैं -
हरिगीत
अनंत दर्शन ज्ञानयुत आरूढ़ अनुपम गुणों में ।
कर्माष्ट बंधन मुक्त जो वे ही अरे अरिहंत हैं ॥२९॥
केवल नाममात्र ही अरंहत हो उसको अरहंत नहीं कहते हैं । इसप्रकार के गुणों से सहित हो उसको अरहंत कहते हैं ।