ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 50
From जैनकोष
णिण्णेहा णिल्लोहा णिम्मोहा णिव्वियार णिक्कलुसा ।
णिब्भय णिरासभावा पव्वज्ज एरिसा भणिया ॥५०॥
नि:स्नेहा निर्लोभा निर्मोहा निर्विकारा नि:कलुषा ।
निर्भया निराशभावा प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥५०॥
आगे फिर कहते हैं -
हरिगीत
निर्लोभ है निर्मोह है निष्कलुष है निर्विकार है ।
निस्नेह निर्मल निराशा जिन प्रव्रज्या ऐसी कही ॥५०॥
जैनदीक्षा ऐसी है । अन्यमत में स्व-पर द्रव्य का भेदज्ञान नहीं है, उनके इसप्रकार दीक्षा कहाँ से हो ॥५०॥