ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 52
From जैनकोष
उवसमखमदमजुत्त सरीरसंकारवज्जिया रुक्खा ।
मयरायदोसरहिया पव्वज्ज एरिसा भणिया ॥५२॥
उपशमक्षमदमयुक्ता शरीरसंस्कार वर्जिता रूक्षा ।
मदरागदोषरहिता प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥५२॥
आगे फिर कहते हैं -
हरिगीत
उपशम क्षमा दम युक्त है श्रृंगारवर्जित रूक्ष है ।
मदरागरुस से रहित है जिनप्रव्रज्या ऐसी कही ॥५२॥
अन्यमत के भेषी क्रोधादिरूप परिणमते हैं, शरीर को सजाकर सुन्दर रखते हैं, इन्द्रियों के विषयों का सेवन करते हैं और अपने को दीक्षासहित मानते हैं, वे तो गृहस्थ के समान हैं, अतीत (यति) कहलाकर उलटे मिथ्यात्व को दृढ़ करते हैं; जैनदीक्षा इसप्रकार है, वही सत्यार्थ है, इसको अंगीकार करते हैं, वे ही सच्चे अतीत (यति) हैं ॥५२॥