ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 53
From जैनकोष
विवरीयमूढभावा पणट्ठकम्मट्ठ णट्ठमिच्छत्त ।
सम्मत्तगुणविसुद्धा पव्वज्ज एरिसा भणिया ॥५३॥
विपरीतमूढभावा प्रणष्टकर्माष्टा नष्टमिथ्यात्वा ।
सम्यक्त्वगुणविशुद्धा प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥५३॥
आगे फिर कहते हैं -
हरिगीत
मूढ़ता विपरीतता मिथ्यापने से रहित है ।
सम्यक्त्व गुण से शुद्ध है जिन प्रवज्या ऐसी कही ॥५३॥