ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 54
From जैनकोष
जिणमग्गे पव्वज्ज छहसंहणणेसु भणिय णिग्गंथा ।
भावंति भव्वपुरिसा कम्मक्खयकारणे भणिया ॥५४॥
जिनमार्गे प्रव्रज्या षट्संहननेषु भणिता निर्ग्रन्था ।
भावयन्ति भव्यपुरुषा: कर्मक्षयकारणे भणिता ॥५४॥
आगे फिर कहते हैं -
हरिगीत
जिनमार्ग में यह प्रव्रज्या निर्ग्रन्थता से युक्त है ।
भव्य भावे भावना यह कर्मक्षय कारण कही ॥५४॥
वज्रवृषभनाराच आदि, छह शरीर के संहनन कहे हैं, उनमें सबमें ही दीक्षा होना कहा है, जो भव्यपुरुष हैं वे कर्मक्षय का कारण जानकर इसको अंगीकार करो । इसप्रकार नहीं है कि दृढ़ संहनन वज्रऋषभ आदि हैं उनमें ही दीक्षा हो और असंसृपाटिक संहनन में न हो, इसप्रकार निर्ग्रन्थरूप दीक्षा तो असंप्राप्तसृपाटिका संहनन में भी होती है ॥५४॥