ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 58
From जैनकोष
तववयगुणेहिं सुद्धा संजमसम्मत्तगुणविसुद्धा य ।
सुद्धा गुणेहिं सुद्धा पव्वज्ज एरिसा भणिया ॥५८॥
तपोव्रतगुणै: शुद्धा संयमसम्यक्त्वगुणविशुद्धा च ।
शुद्धा गुणै: शुद्धा प्रव्रज्या ईदृशी भणिता: ॥५८॥
आगे फिर विशेष कहते हैं -
हरिगीत
सम्यक्त्व संयम तथा व्रत-तप गुणों से सुविशुद्ध हो ।
शुद्ध हो सद्गुणों से जिन प्रव्रज्या ऐसी कही ॥५८॥
तप व्रत सम्यक्त्व इन सहित और जिनमें इनके मूलगुण तथा अतिचारों का शोधना होता है इसप्रकार दीक्षा शुद्ध है । अन्य वादी तथा श्वेताम्बरादि चाहे जैसे कहते हैं, वह दीक्षा शुद्ध नहीं है ॥५८॥