ग्रन्थ:बोधपाहुड़ देशभाषामयवचनिका समाप्त
From जैनकोष
छप्पय
प्रथम आयतन१ दुतिय चैत्यगृह२ तीजी प्रतिमा३ ।
दर्शन४ अर जिनबिंब५ छठो जिनमुद्रा६ यतिमा ॥
ज्ञान७ सातमूं देव८ आठमूं नवमूं तीरथ९ ।
दसमूं है अरहन्त१० ग्यारमूं दीक्षा११ श्रीपथ ॥
इम परमारथ मुनिरूप सति अन्यभेष सब निंद्य है ।
व्यवहार धातुपाषाणमय आकृति इनिकी वंद्य है ॥१॥
(दोहा)
भयो वीर जिनबोध यहु, गौतमगणधर धारि ।
बरतायो १पंचमगुरु, नमूं तिनहिं मद छारि ॥२॥
इति श्रीकुन्दकुन्दस्वामि विरचित बोधपाहुड की जयपुरनिवासि पण्डित जयचन्द्रछाबड़ाकृत देशभाषामयवचनिका समाप्त ॥४॥