ग्रन्थ:दर्शनपाहुड़ गाथा 10
From जैनकोष
जह मूलम्मि विणट्ठे दुमस्स परिवार णत्थि परवड्ढी ।
तह जिणदंसणभट्ठा मूलविणट्ठा ण सिज्झंति ॥१०॥
यथा मूले विनष्टे द्रुमस्य परिवारस्य नास्ति परिवृद्धि: ।
तथा जिनदर्शनभ्रष्टा: मूलविनष्टा: न सिद्धयन्ति ॥१०॥
अब कहते हैं कि जो दर्शन भ्रष्ट है, वह मूलभ्रष्ट है, उसको फल की प्राप्ति नहीं होती -
जिस तरह द्रुम परिवार की वृद्धि न हो जड़ के बिना ।
बस उस तरह ना मुक्ति हो जिनमार्ग में दर्शन बिना ॥१०॥