सत्कारपुरस्कारपरीषहजय
From जैनकोष
एक परीषह । इसमें पूजा, प्रशंसा, आमंत्रण आदर आदि के न होने पर हृदय में कुविचारों को स्थान नहीं रहता । सत्कार और पुरस्कार के होने अथवा नहीं होने में हर्ष-विषाद नहीं किया जाता है । महापुराण 36.126
एक परीषह । इसमें पूजा, प्रशंसा, आमंत्रण आदर आदि के न होने पर हृदय में कुविचारों को स्थान नहीं रहता । सत्कार और पुरस्कार के होने अथवा नहीं होने में हर्ष-विषाद नहीं किया जाता है । महापुराण 36.126