GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 147
From जैनकोष
जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा (१४७)
सो तेण हवदि बंधो पोग्गलकम्मेण विविहेण ॥१५५॥
जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा (१४७)
सो तेण हवदि बंधो पोग्गलकम्मेण विविहेण ॥१५५॥