कृतक
From जैनकोष
स.म.! आपेक्षितपरव्यापारो हि भाव: स्वभावनिष्पन्नो कृतमित्युच्यते।=जो पदार्थ अपने स्वभाव की सिद्धि में दूसरे के व्यापार की इच्छा करता है, उसे कृतक कहते हैं।
Previous Page | Next Page |
स.म.! आपेक्षितपरव्यापारो हि भाव: स्वभावनिष्पन्नो कृतमित्युच्यते।=जो पदार्थ अपने स्वभाव की सिद्धि में दूसरे के व्यापार की इच्छा करता है, उसे कृतक कहते हैं।
Previous Page | Next Page |