केवल
From जैनकोष
मो.पा./टी./६/३०८/१३ केवलोऽसहाय: केवलज्ञानमयो वा के परब्रह्मनि निजशुद्धबुद्धैकस्वभावे आत्मनि बलमनन्तवीर्य यस्य स भवति केवल:, अथवा केवते सेवते निजात्मनि एकलोलीभावेन तिष्ठतीति केवल:।=केवल का अर्थ असहाय या केवलज्ञानमय है। अथवा ‘क’ का अर्थ परब्रह्म या शुद्ध बुद्धरूप एक स्वभाववाला आत्मा है उसमें है बल अर्थात् अनन्तवीर्य जिसके। अथवा जो केवते अर्थात् सेवन करता है–अपनी आत्मा में एकलोलीभाव से रहता है वह केवल है।
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