GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 64 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[अत्ता] आत्मा, [कुणदि] करता है । क्या करता है ? [सहावं] स्वभाव, राग-द्वेष-मोह सहित परिणाम करता है ।
प्रश्न - राग-द्वेष-मोह रहित और निर्मल चैतन्य-ज्योति सहित वीतराग आनन्द-रूप परिणमन स्वभाव कहलाता है; (आप) रागादि विभाव परिणाम को स्वभाव शब्द से कैसे कहते हैं ? इसका परिहार करते हैं -
उत्तर - बंध का प्रकरण होने से अशुद्ध निश्चय की अपेक्षा रागादि भाव परिणाम भी स्वभाव कहा जाता है -- इसप्रकार दोष नहीं है ।
[तत्थगया] उस आत्म-शरीर से अवगाहित क्षेत्र में गत, स्थित हैं । वे कौन स्थित हैं ? [पोग्गला] कर्म-वर्गणा योग्य पुद्गल स्कन्ध स्थित हैं । [गच्छन्ति कम्मभावं] वे कर्मभाव, द्रव्य-कर्म-रूप पर्याय को प्राप्त होते हैं, कर्म-रूप परिणमित होते हैं । करण-भूत किससे परिणमित होते हैं ? [सहावेहिं] निश्चय की अपेक्षा अपने उपादान कारण से उस रूप परिणमित होते हैं । कैसे परिणमित होते हैं ? जैसा अन्योन्य-अवगाह सम्बन्ध है, वैसे ही परिणमित होते हैं । कैसे होते हुए परिणमित होते हैं ? [अवगाढा] क्षीर-नीर न्याय से संश्लिष्ट होते हुए परिणमित होते हैं -- ऐसा अभिप्राय है ॥७१॥