GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 108 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
जीवा जीव हैं । वे किस विशेषता-वाले हैं? संसारत्था णिव्वादा वे संसारस्थ (संसारी) और निवृत्त (मुक्त) हैं । चेदणप्पगा दुविहा वे दोनों ही चेतनात्मक हैं; संसारी कर्म-चेतना और कर्म-फल-चेतनात्मक हैं, मुक्त शुद्ध चेतनात्मक हैं । उवओगलक्खणा विय वे उपयोग लक्षण-वाले भी हैं । आत्मा के चैतन्य का अनुसरण करने-वाला परिणाम उपयोग है; केवलज्ञान-दर्शन उपयोग लक्षण-वान (अरहंत-सिद्ध) मुक्त हैं, क्षायोपशमिक अशुद्धोपयोग से युक्त संसारी हैं । देहादेहप्पवीचारा वे देहादेह प्रवीचार वाले हैं; अदेह-आत्म-तत्त्व से विपरीत देह सहित (देह का भोग-उपयोग करनेवाले) देह प्रवीचारी हैं, (देह का भोग-उपयोग नहीं करनेवाले) अदेह प्रवीचारी सिद्ध हैं, ऐसा सूत्रार्थ है ॥११७॥
इस प्रकार जीवाधिकार की सूचना परक गाथा-रूप से प्रथम गाथा-सूत्र पूर्ण हुआ ।