GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 139 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
इन्द्रिय, कषाय, संज्ञा णिग्गहिदा निर्गृहीत, निषिद्ध किए, रोके गए हैं, जेहिं कर्ताभूत जिन पुरुषों द्वारा, सुट्ठु सुष्ठु, विशेष-रूप से । क्या करके रोके गए हैं ? पहले स्थित होकर रोके गए हैं । कहाँ स्थित होकर रोके गए हैं ? मग्गम्हि संवर के कारणभूत रत्नत्रय लक्षण मोक्षमार्ग में स्थित होकर रोके गए हैं । कैसे रोके गए हैं ? यावत् जब जिस गुणस्थान में जितने काल जिस अंश से --
((सोलस पणवीस णभं दस चउ छक्केक्क बंधवोच्छिण्णा ।
दुगतीस चदुरपुव्वे पण सोलस जोगिणो एक्को ॥))
'(गुणस्थान के अनुसार क्रमश:) सोलह, पच्चीस, शून्य, दश, चार, छह, एक, अपूर्वकरण में २+३०+४=कुल छत्तीस, पाँच, सोलह और योगी के (तेरहवें गुणस्थान में) एक की बंधव्युच्छित्ति होती है ।'
-- इसप्रकार गाथा में कहे गए त्रिभंगी के क्रम से रोके गए हैं तब उस गुणस्थान में, उस समय, उतने अंश से, अपने-अपने गुणस्थान के परिणामानुसार तेसिं उन पूर्वोक्त पुरुषों के, पिहिदं पिहित, प्रच्छादित, झंपित, बंद होता है । क्या बंद होता है ? पापासवच्छिद्दं पापास्रव का छिद्र, पापों के आने का द्वार बन्द होता है ।
यहाँ सूत्र में पूर्व गाथा कथित द्रव्य-पापास्रव के कारणभूत भाव-पापास्रव का निरोध बताया, उससे द्रव्य-पापास्रव के संवर का कारणभूत भाव-पापास्रव का संवर जानना चाहिए, ऐसा सूत्रार्थ है ॥१४९॥