GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 141 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
जस्स जिन योगी के । कैसे जिन योगी के ? विरदस्स शुभाशुभ संकल्प-विकल्प से रहित जिन योगी के णत्थि नहीं है, जदा खलु जिस समय वास्तव में । उनके क्या नहीं है ? पुण्णं पावं च पुण्य और पाप दोनों उनके नहीं हैं । उनके वे किसमें नहीं हैं ? योगे मन, वचन, काय के कर्म में / व्यापार में उनके वे नहीं हैं; वास्तव में तो योग भी संवरणरूप है / नष्ट हो गया है; तस्स तदा उन भगवान के तब संवर होता है । उनके किस सम्बन्धी संवर होता है ? कम्मस्स पुण्य-पाप रहित अनन्त गुणस्वरूप परमात्मा से विलक्षण कर्म का संवर होता है । किस विशेषतावाले कर्म का संवर होता है ? सुहासुहकदस्स शुभाशुभ-कृत-कर्म का संवर होता है ।
यहाँ निर्विकार शुद्धात्मानुभूति भाव-संवर है और उसके निमित्त से द्रव्य-कर्म का निरोध होना द्रव्य-संवर, है ऐसा भावार्थ है ॥१५१॥
इस प्रकार नौ पदार्थों के प्रतिपादक द्वितीय महाधिकार में संवर-पदार्थ के व्याख्यान की मुख्यता वाली तीन गाथाओं से सातवाँ अन्तराधिकार पूर्ण हुआ ।
अब शुद्धात्मानुभूति लक्षण शुद्धोपयोग से साध्य निर्जरा अधिकार में संवरजोगेहिं जुदो इत्यादि तीन गाथा द्वारा समुदाय-पातनिका है ।