GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 26 - अर्थ
From जैनकोष
जीवः (संसारस्थित) जीव चेतयिता चेतयिता चेतनेवाला है, उपयोगविशेषितः उपयोगलक्षित है, प्रभुः प्रभु है, कर्ता कर्ता है, भोक्ता भोक्ता है, देहमात्रः देहप्रमाण है, न हि मूर्तः अमूर्त है च और कर्मसंयुक्तः कर्मसंयुक्त इति भवति ऐसा होता है ।