विज्ञानवाद
From जैनकोष
- मिथ्या विज्ञानवाद
ज्ञानार्णव/4/23 ज्ञानादेवेष्टसिद्धिः स्यात्ततोऽन्यः शास्त्रविस्तरः। मुक्तेरुक्तमतो बीजं विज्ञानं ज्ञानवादिभिः।23। = ज्ञानवादियों का मत तो ऐसा है, कि एकमात्र ज्ञान से ही इष्ट सिद्धि होती है, इससे अन्य जो कुछ है सो सब शास्त्र का विस्तारमात्र है। इस कारण मुक्ति का बीजभूत विज्ञान ही है।–(विशेष देखें सांख्य व वेदांत)।
- विज्ञानवादी बौद्ध–देखें बौद्धदर्शन ।
- सम्यक् विज्ञानवाद
ज्ञानार्णव/4/27 में उद्धृत –ज्ञान ही ने क्रिया पुंसि परं नारभते फलम्। तरोश्छायेव किं लभ्या फलश्रीर्नष्टदृष्टिभिः।1। ज्ञानं पंंगौ क्रिया चांधे निःश्रद्धे नार्थकृद्द्वयम्। ततो ज्ञानं क्रिया श्रद्धा त्रयं तत्पदकारणम्।2। हतं ज्ञानं क्रियाशून्यं ह्रता चाज्ञानिनः क्रिया। धावंनप्यंधको नष्टः पश्यन्नपि च पंंगुकः।3। = ज्ञानहीन पुरुष की क्रिया फलदायक नहीं होती। जिसकी दृष्टि नष्ट हो गयी है, वह अंधा पुरुष चलते-चलते जिस प्रकार वृक्ष की छाया को प्राप्त होता है, उसी प्रकार क्या उसके फल को भी पा सकता है।1। (विशेष देखें चेतना - 3.8; धर्म/2)। पंगु में तो वृक्ष के फल का देख लेना प्रयोजन को नहीं साधता और अंधे में फल जानकर तोड़ने रूप क्रिया प्रयोजन को नहीं साधती। श्रद्धान रहित के ज्ञान और क्रिया दोनों ही, प्रयोजनसाधक नहीं हैं। इस कारण ज्ञान क्रिया, श्रद्धा तीनों एकत्र होकर ही वांछित अर्थ की साधक होती है।2। क्रिया रहित तो ज्ञान नष्ट है और अज्ञानीकी क्रिया नष्ट होती हैं। दौड़ते-दौड़ते अंधा नष्ट हो गया और देखता-देखता पंगु नष्ट हो गया।3। (विशेष देखें मोक्षमार्ग - 1.2)।
देखें नय उ./5/4 नय नं.43–(आत्मा द्रव्य ज्ञाननय की अपेक्षा विवेक की प्रधानता से सिद्ध होता है)।
देखें ज्ञान - IV.1.1 (ज्ञान ही सर्व प्रधान है। वह अनुष्ठान या क्रिया का स्थान है)।