ग्रह
From जैनकोष
- अठासी ग्रहों का नाम निर्देश
ति.प./७/१५-२२ का भाषार्थ—१. बुध; २. शुक्र; ३. वृहस्पति; ४. मंगल; ५. शनि; ६. काल; ७. लोहित; ८.कनक; ९. नील; १०. विकाल; ११. केश (कोश); १२. कवयव (कचयव); १३. कनक-संस्थान; १४. दुन्दुभक (दुन्दुभि); १५. रक्तनिभ; १६.नीलाभास; १७. अशोक संस्थान; १८. कंस; १९. रूपनिभ (रूपनिर्भास); २०. कंसकवर्ण (कंसवर्ण); २१. शंखपरिणाम; २२. तिलपुच्छ: २३. शंखवर्ण; २४. उदकवर्ण (उदय); २५. पंचवर्ण; २६. उत्पात; २७. धूमकेतु; २८. तिल; २९. नभ; ३०. क्षारराशि; ३१. विजिष्णु (विजयिष्णु); ३२. सदृश; ३३. संधि (शान्ति); ३४. कलेवर; ३५. अभिन्न (अभिन्न सन्धि); ३६. ग्रन्थि; ३७. मानवक (मान); ३८. कालक; ३९. कालकेतु; ४०. निलय; ४१. अनय; ४२. विद्युज्जिहृ; ४३. सिंह; ४४. अलक; ४५. निर्दु:ख; ४६. काल; ४७. महाकाल; ४८. रुद्र; ४९. महारुद्र; ५०. सन्तान; ५१. विपुल; ५२. संभव; ५३. स्वार्थी; ५४. क्षेम (क्षेमंकर); ५५. चन्द्र; ५६. निर्मन्त्र; ५७. ज्यातिष्माण; ५८. दिशसंस्थित (दिशा); ५९. विरत (विरज); ६०. वीतशोक; ६१. निश्चल; ६२. प्रलम्ब; ६३. भासुर; ६४. स्वयंप्रभ; ६५. विजय; ६६. वैजयन्त; ६७. सीमंकर; ६८. अपराजित; ६९. जयन्त; ७०. विमल; ७१. अभयंकर; ७२. विकस; ७३. काष्ठी (करिकाष्ठ); ७४. विकट; ७५. कज्जलो; ७६. अग्निज्वाल; ७७. अशोक; ७८. केतु; ७९. क्षीररस; ८०. अघ; ८१. श्रवण; ८२. जलकेतु; ८३. केतु (राहु); ८४. अंतरद; ८५. एकसंस्थान; ८६. अश्व; ८७. भावग्रह; ८८. महाग्रह, इस प्रकार ये ८८ ग्रहों के नाम हैं।
नोट—ब्रैकेट में दिए गए नाम त्रिलोक सार की अपेक्षा है। नं.१७; २६; ३८; ३९; ४४; ५१; ५५; ७५; ७७ ये नौ नाम त्रि.सा. में नहीं हैं। इनके स्थान पर अन्य नौ नाम दिये हैं–अश्वस्थान; धूम; अक्ष; चतुपाद; वस्तून; त्रस्त; एकजटी; श्रवण; (त्रि.सा./३६३-३७०)
- ग्रहों की संख्या व उनका लोक में अवस्थान—( देखें - ज्योतिष देव / २ )।
Previous Page | Next Page |