चतुरंक
From जैनकोष
ध.१२/४,२,७,२१४/१७०/६ एत्थ असंखेज्जभागवड्ढीएचत्तारि अंको।=असंख्यातभाग वृद्धि को चतुरंक संज्ञा है। (गो.जी./मू./३२५/६८४)।
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ध.१२/४,२,७,२१४/१७०/६ एत्थ असंखेज्जभागवड्ढीएचत्तारि अंको।=असंख्यातभाग वृद्धि को चतुरंक संज्ञा है। (गो.जी./मू./३२५/६८४)।
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