अविनाभाव
From जैनकोष
परीक्षामुख परिच्छेद 3/16 सहक्रमभावनियमोऽविनाभावः ॥16॥
= सहभाव नियम तथा क्रमभाव नियमको अविनाभाव कहते हैं।
( न्यायदीपिका अधिकार 3/$49/93/5)
पंचाध्यायी / श्लोक 5/491 अवि नाभावोऽपि यथा येन बिना जायते न तत्सिद्धिः।
= जिसके बिना जिसकी सिद्धि न होय उसको अविनाभावी संबंध कहते हैं।
2. अविनाभावके भेद
परीक्षामुख परिच्छेद 3/16 सहक्रमभावनियमोऽविनाभावः।
= अविनाभाव संबंध दो प्रकारका है- एक सहभाव, दूसरा क्रमभाव।
3. सहभाव व क्रमभाव अविनानाभावके लक्षण
परीक्षामुख परिच्छेद 3/17-18 सहचारीणोर्व्याप्यव्यापकभावयोश्व सहभावः ॥17॥ पूर्वोत्तरचारणोः कार्यकारणयोश्च कर्मभावः ॥18॥
= साथ रहनेवालेमें तथा व्याप्य और व्यापक पदार्थोंमें सहभाव नियम नामका अविनाभाव होता है। जैसे द्रव्य व गुणमें ॥17॥ पूर्वचर व उत्तरचरोंमें तथा कार्यकारणोंमें क्रमभावी निय होता है। जैसे-मेघ व वर्षामें ॥18॥
4. अविनाभावका निर्णय तर्क द्वारा होता है
परीक्षामुख परिच्छेद 3/19 तर्कात्तन्निर्णयः ॥19॥
= तर्कसे इसका निर्णय होता है।